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"बिना तकिए के प्यार / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर
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मेरी पत्नी ने कहा | मेरी पत्नी ने कहा |
22:21, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मेरी पत्नी ने कहा
मैं कोई तकिया लगाकर नहीं सोती
मेरे तकिए में नींद मर गई है,
नींद मर गई है तो ख़्वाब सारे मर गए हैं
नहीं है उसमें मेरे आँसू
वे सूख गए हैं,
चाँद-तारों की बात तो बहुत दूर है,
बादलों की तो मैं नहीं कर सकती कल्पना
अपने बच्चों के लिए
और तुम्हारे अच्छे स्वास्थ्य की कामना लिए
घसीट रही हूँ यह ज़िंदगी
तकिया तो मैं देना चाहता था एक
अपनी पत्नी को
पर मेरे तकिए में न हवा है
न रूई है,
सिलाई भी उघड़ी हुई
काँटे हैं उसमें छिपे अपने वक़्त के
काँटों से ही मैं उलझता रहा हूँ
अपनी पत्नी से वर्षों से
बगैर तकिए के प्यार करता रहा हूँ