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"यही सोच कर / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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13:25, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

यही सोचकर आज नहीं निकला -
गलियारे में
मिलते ही पूछेंगे बादल
तेरे बारे में ।

लहराते थे झील-ताल, पर्वत
हरियाते थे
हम हँसते थे झरना-झरना हम
बतियाते थे
इन्द्रधनुष उतरा करता था
एक इशारे में ।

छूती थी पुरवाई खिड़की, बिजली
छूती थी
झूला छूता था, झूले की कजली -
छूती थी
टीस गई बरसात भरी
पिछले पखवारे में ।

जंगल में मौसम सोने का हिरना
लगता था
कितना अच्छा चाँद का नागा करना-
लगता था
मन चकोर का बसता है
अब भी अंगारे में ।।