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− | रचनाकारः [[अनिल जनविजय]]
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− | [[Category:कविताएँ]]
| + | |रचनाकार=अनिल जनविजय |
− | [[Category:अनिल जनविजय]]
| + | |संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे / अनिल जनविजय |
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− | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
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| माँ, प्यारी माँ<br> | | माँ, प्यारी माँ<br> |
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| माँ, प्यारी माँ<br> | | माँ, प्यारी माँ<br> |
| मुझे अपनी शरण में ले<br><br> | | मुझे अपनी शरण में ले<br><br> |
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− | धूमिल की कुछ कविताएँ
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− | 1 दिनचर्या
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− | सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा,
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− | हम बुझी हुई बत्तियों को
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− | इकट्ठा करेंगे और
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− | आपस में बांट लेंगे.
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− | दुपहर जब कहीं बर्फ नहीं होगी
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− | और न झड़ती हुई पत्तियाँ
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− | आकाश नीला और स्वच्छ होगा
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− | नगर क्रेन के पट्टे में झूलता हुआ
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− | हम मोड़ पर मिलेंगे और
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− | एक दूसरे से ईर्ष्या करेंगे.
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− | रात जब युद्ध एक गीत पंक्ति की तरह
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− | प्रिय होगा हम वायलिन को
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− | रोते हुए सुनेंगे
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− | अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे
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− | दुःखी होंगे.
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− | 2 नगर-कथा
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− | सभी दुःखी हैं
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− | सबकी वीर्य-वाहिनी नलियाँ
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− | सायकिलों से रगड़-रगड़ कर
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− | पिंची हुई हैं
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− | दौड़ रहे हैं सब
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− | सम जड़त्व की विषम प्रतिक्रिया :
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− | सबकी आँखें सजल
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− | मुट्ठियाँ भिंची हुई हैं.
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− | व्यक्तित्वों की पृष्ठ-भूमि में
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− | तुमुल नगर-संघर्ष मचा है
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− | आदिम पर्यायों का परिचर
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− | विवश आदमी
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− | जहाँ बचा है.
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− | बौने पद-चिह्नों से अंकित
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− | उखड़े हुए मील के पत्थर
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− | मोड़-मोड़ पर दीख रहे हैं
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− | राहों के उदास ब्रह्मा-मुख
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− | ‘नेति-नेति' कह
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− | चीख रहे हैं.
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− | .
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− | .
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− | 3 गृहस्थी : चार आयाम
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− | मेरे सामने
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− | तुम सूर्य - नमस्कार की मुद्रा में
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− | खड़ी हो
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− | और मैं लज्जित-सा तुम्हें
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− | चुप-चाप देख रहा हूँ
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− | (औरत : आँचल है,
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− | जैसा कि लोग कहते हैं - स्नेह है,
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− | किन्तु मुझे लगता है-
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− | इन दोनों से बढ़कर
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− | औरत एक देह है)
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− | मेरी भुजाओं में कसी हुई
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− | तुम मृत्यु कामना कर रही हो
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− | और मैं हूँ-
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− | कि इस रात के अंधेरे में
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− | देखना चाहता हूँ - धूप का
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− | एक टुकड़ा तुम्हारे चेहरे पर
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− | रात की प्रतीक्षा में
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− | हमने सारा दिन गुजार दिया है
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− | और अब जब कि रात
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− | आ चुकी है
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− | हम इस गहरे सन्नाटे में
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− | बीमार बिस्तर के सिरहाने बैठकर
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− | किसी स्वस्थ क्षण की
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− | प्रतीक्षा कर रहे हैं
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− | न मैंने
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− | न तुमने
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− | ये सभी बच्चे
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− | हमारी मुलाकातों ने जने हैं
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− | हम दोनों तो केवल
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− | इन अबोध जन्मों के
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− | माध्यम बने हैं
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− | धूमिल की अंतिम कविता
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− | "शब्द किस तरह
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− | कविता बनते हैं
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− | इसे देखो
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− | अक्षरों के बीच गिरे हुए
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− | आदमी को पढ़ो
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− | क्या तुमने सुना की यह
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− | लोहे की आवाज है या
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− | मिट्टी में गिरे हुए खून
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− | का रंग"
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− | लोहे का स्वाद
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− | लोहार से मत पूछो
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− | उस घोड़े से पूछो
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− | जिसके मुँह में लगाम है.
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− | **-**
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− | (साभार - कविता संग्रह - कल सुनना मुझे, युगबोध प्रकाशन, वाराणसी, 1977)
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− | नीलेश रघुवंशी की पाँच कविताएँ
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− | ज़रा ठहरो
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− | इस मकान की पहली बरसात
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− | याद आ गई घर की ।
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− | छोटे भाई-बहनों को न निकलने की
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− | हिदायत देती हुई
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− | जल्दी-जल्दी बाहर से कपड़े
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− | समेट रही होगी माँ ।
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− | पिता चढ़ आए होंगे छत पर
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− | भाई निकल गया होगा
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− | साइकिल पर बरसाती लेने ।
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− | पानी ज़रा ठहरो छत को ठीक होने दो
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− | ले आने दो भाई को बरसाती ।
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− | दुर्घटना
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− | बच्चा बहुत ख़ुश होता है
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− | किलकारियाँ मारता है
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− | चलती ट्रेन को देखकर
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− | हो न जाए उसके सामने
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− | रेल-एक्सीडेंट ।
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− | माँ
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− | माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
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− | दिखती है जब कोई औरत ।
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− | घबराई हुई-सी प्लेटफॉ़म पर
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− | हाथों में डलिया लिए
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− | आँचल से ढँके अपना सर
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− | माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।
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− | मेरी माँ की तरह
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− | ओ स्त्री
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− | उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
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− | क्यों, आख़िर क्यों ?
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− | क्यका पक्षियों का कलरव
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− | झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?
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− | अभाव
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− | इस बार फिर मेरे बैग को
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− | मत टटोलना माँ
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− | तंगहाली के सपनों के सिवा
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− | कुछ नहीं है उसमें।
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− | जानती हूँ ख़ूब फबेगी तुझ पर वह साड़ी
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− | पर साड़ी सपनों से
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− | ख़रीदी नहीं जा सकती ।
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− | काश ख़रीद पाती मैं तुम्हारे लिए
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− | सिंदूर और साड़ी
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− | पिता के लिए नया कुर्ता
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− | भाई के लिए मफ़लर
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− | जबान होती बहन के लेए कुछ सपने ।
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− | ख़ाली जेबों में हाथ डाले
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− | हर रोज़ जाती हूँ बाजा़र
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− | और घंटों करती रहती हूँ वंडो-शॉपिंग ।
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− | सत्रह साल की लड़की
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− | सत्रह साल की लड़की के स्वपन में
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− | आसमान नहीं है
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− | पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
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− | सुबह की एक कआँच भी नहीं
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− | घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
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− | सपना देखती है बसस
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− | अठारह की होने और घर बसाने का ।
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− | लड़की ने तलाशा सुख
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− | हमेशा औरों में
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− | खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
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− | सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
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− | लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
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− | सोचती है लड़की
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− | सिर्फ़ एक घर के बारे में ।
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− | लड़की जो घर की उजास है
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− | हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी
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− | ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
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− | चाल में उसके नहीं होगी
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− | नृत्य की थिरकन
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− | पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
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− | युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
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− | धरती पर चलते
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− | धरती के बारे में कभी नहीं
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− | सोचेगी लड़की ।
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− | कभी नहीं चाहा लोगों ने
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− | लड़की भी बैठे पेड़ पर ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
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− | चिडि़यों की तरह उड़ जाना
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− | नहीं चाहा छू लेना आकाश ।
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− | कभी नहीं देख पाएगी लड़की
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− | आसमान से निकलती नदी
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− | नदी से निकलते पहाड़
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− | पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
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− | नहीं आ पाएगी कभी
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− | लड़की की आँखों में ।
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− | ओ मेरी बहन की तरह
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− | सत्रह साल की लड़की
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− | दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
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− | मैदानों में
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− | क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
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− | तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
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− | कोई उछाल !
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− | किताब
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− | प्रकाशको, तुम करो किताबों का दाम
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− | किताबें नहीं हैं महँगी शराब
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− | पालो अपने अंदर इच्छा
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− | दौड़ पड़ें बच्चे किताबों के पीछे
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− | दौड़ते हैं जैसे तितनी पकड़ने को ।
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− | मैं रखना चाहती हूँ
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− | किताब को उतने ही पास
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− | जितने नज़दीक रहते हैं मेरे सपने
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− | किताबो, तुम साथ रहो
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− | हमारी अधूरी इच्छाओं के
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− | कहीं सिक्कों के जाल में
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− | गुम न हो जाये इच्छाओं का अकेलापन ।
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− | मैं उपहार में देना चाहती हूँ किताबें उन्हें
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− | जो होते-होते मेरे छिप गए
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− | लुका-छिपी के खेल में-
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− | उन्हें भी एक किताब
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− | जो हो नहीं सके मेरे कभी
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− | बाईस बरस की इस ज़िंदगी में
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− | लिख नहीं सकी एक किताब पर भी
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− | अपना नाम ।
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− | ओ महँगी किताबो
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− | तुम थोड़ी सस्ती हो जाओ
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− | मैं उतरना चाहती हूँ
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− | तुम्हारी इस रहस्यमयी दुनिया में ।
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− | तब भी
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− | तुम
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− | गए भी तो आँधी की तरह
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− | मैं
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− | बची रही लौ की तरह तब भी ।
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− | चबूतरा
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− | चबूतरे पर बैठी औरतें करती हैं बातें
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− | सिर-पैर नहीं कोई
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− | अनंत तक फैली
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− | कभी न ख़्तम होने वाली
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− | भर देती हैं कभी गहरी उदासी
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− | और खीकझ से ।
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− | निपटाकर कामकाज
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− | बैठी हैं घेरकर चबूतरा
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− | दमक रहे हैं सबके चेहरे
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− | चेहरे पर किसी के कुछ ज़्यादा ही नमक
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− | हाथ नहीं किसी के ख़ाली
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− | भरे हैं फुर्सत से भरे कामों से ।
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− | कहती है उनमें से एक
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− | जन्मा है फ़लाँ ने बच्चा
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− | बढ़ जाएगा क़द उसका एक इंच
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− | मिलती हैं सब उसकी हीँ में हीँ
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− | होती हैं खुश-
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− | निकलती है फिर नई बात ।
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− | क्या जन्मने से बच्चा बढ़ता है क़द ?
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− | क्यों नहीं बढ़ा फिर माँ का क़द ?
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− | बताती है बहन
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− | बढ़ता है क़द बेटा जन्मने से
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− | जन्मी हैं माँ ने आठ बेटियाँ ।
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− | बुझाकर बत्ती लेटते हैं हम बिस्तरे पर
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− | गहरी उदासी और अनमने भाव से
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− | सोचते हुए माँ के बारे में
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− | खींचे उसके जीवन के अनन्य चित्र
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− | भरे हम सबने पहली बार एक से रंग ।
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− | हमारे सपनों को सँजोती
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− | चिंता करती हमारे भविष्य की
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− | रहती है कैसी उतास
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− | बैठती नहीं कभी चबूतरे पर
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− | फ़ुर्सत से भरे कामों को निपटाते
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− | सोचती है वह हमारे घरों के बारे में ।
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− | खिड़की
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− | देर रात
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− | सो चुका है जब शहर
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− | अँधेरे के बीच टिमटिमाता है तारा
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− | खिड़की जो एक खुली हुई है
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− | है साथ तारे के ।
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− | कमरे और खिड़की के बीच का फ़ासला
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− | कमरे में है उदासी बावजूद रोशनी के ।
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− | भीतर खिड़की के क्या ?
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− | शायद
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− | डूबा हुआ हो कोई स्वप्न में
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− | पढ़ी जा रही हा कोई किताब
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− | सोच रहा है कोई सुबह के बारे में ।
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− | यह भी हो सकता है
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− | प्रतीक्षा में है कोई लड़की
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− | जाग रही है माँ निगरानी में ।
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पंक्ति 561: |
पंक्ति 29: |
| माँ, प्यारी माँ<br> | | माँ, प्यारी माँ<br> |
| मुझे अपनी शरण में ले<br> | | मुझे अपनी शरण में ले<br> |
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− | मैं मौन रहूँ
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− | तुम गाओ
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− | जैसे फूले अमलतास
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− | तुम वैसे ही
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− | खिल जाओ
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− | जीवन के
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− | अरुण दिवस सुनहरे
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− | नहीं आज
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− | तुम पर कोई पहरे
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− | जैसे दहके अमलतास
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− | तुम वैसे
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− | जगमगाओ
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− | कुहके जग-भर में
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− | तू कल्याणी
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− | मकरंद बने
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− | तेरी युववाणी
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− | जैसे मधुपूरित अमलतास
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− | तुम सुरभि
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− | बन छाओ
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− | अनमने दिन
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− | दिन बीते
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− | रीते-रीते
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− | इन सूनी राहों पे
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− | मिला न कोई राही
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− | बना न कोई साथी
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− | वन सूखे चाहों के
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− | याद न कोई आता
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− | न मन को कोई भाता
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− | घेरे खाली हैं बाहों के
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− | कलप रहा है तन
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− | जैसे भू-अगन
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− | दिन आए फिर कराहों के
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− | अभ्रकी धूप
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− | यह धूप बताशे के रंग की
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− | यह दमक आतशी दर्पण की
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− | कई दिनों में आज खिल आई है
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− | यह आभा दिनकर के तन की
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− | फिर चमक उठा गगन सारा
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− | फिर गमक उठा है वन सारा
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− | फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
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− | कुसुमित हो उठा जीवन सारा
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− | यह धूप कपूरी, क्या कहना
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− | यह रंग कसूरी, क्या कहना
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− | अक्षत-सा छींट रही मन में
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− | उल्लास-माधुरी क्या कहना
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− | फिर संदली धूल उड़े हलकी
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− | फिर जल में कंचन की झलकी
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− | फिर अपनी बाँकी चितवन से
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− | मुझे लुभाए यह लड़की
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− | पहले की तरह
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− | पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
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− | लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
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− | ''अरे. . . सब-कुछ पहले जैसा है
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− | सब वैसा का वैसा है. . .
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− | पहले की तरह. . .''
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− | फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
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− | लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
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− | उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
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− | फिर उस की आँखों में झाँका
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− | मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
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− | हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
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− | चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
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− | बरसों के बाद इस तरह मिले हम
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− | पहले की तरह
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− | प्रतीक्षा
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− | अभी महीना गुज़रा है आधा
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− | शेष और हैं पंद्रह दिन
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− | समय यह सरके कच्छप-गति से
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− | नंदिनी तेरे बिन
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− | जीवन खाली है, मन खाली
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− | स्मृति की जकड़न
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− | नीली पड़ गई देह विरह से
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− | घेर रही ठिठुरन
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− | मर जाएगा कवि यह तेरा
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− | बिखर जाएगा फूल
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− | अरी, नंदिनी, जब आएगी तू
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− | बस, शेष बचेगी धूल
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− | बदलाव
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− | जब तक मैं कहता रहा
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− | जीवन की कथा उदास
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− | उबासियाँ आप लेते रहे
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− | बैठे रहे मेरे पास
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− | पर ज्यों ही शुरू किया मैं ने
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− | सत्ता का झूठा यश-गान
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− | सिर-माथे पर मुझे बैठाकर
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− | किया आप ने मेरा मान
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− | वह दिन
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− | उचकी वह पंजों पर थोड़ा-सा
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− | फिर मेरी ओर होंठ बढ़ाए
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− | चूमा उसे मैं ने यों, ज्यों मारा कोड़ा-सा
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− | यह अहम हमारा हमें लड़ाए
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− | फिर झरने लगे आँसू वहाँ निरंतर
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− | धुल गए बोझल से वे पल-छिन
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− | सावन की बारिश में निःस्वर
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− | डूब गया वह उदास दिन
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