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22:46, 19 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
बच्चों के लिए एक कविता
एक बार की बात सुनो तुम
चमकीली वह रात सुनो तुम ।
अपने आँगन में उतरी थी
तारों की बारात सुनो तुम ।।
गोलू आओ, बेबू आओ
निक्कू, चीनू तुम भी आओ ।
जब हम तुम जैसे बच्चे थे
मन के खरे और सच्चे थे ।
क़लम डुबो कर लिखते जिसमें
शीशे की दावात सुनो तुम ।।
नीले स्याही का जादू जब
सिर चढ़ कर बोला करता था ।
कोरे पन्नों पर सपनों का
पंछी पर तोला करता था ।
हर उड़ान में शामिल होती
अपने मन की बात सुनो तुम ।।
आम,बेर, इमली, जामुन के
पेड़ हमारे बड़े निकट थे ।
गूलर, नीम और बरगद के
पेड़ साथ ही खड़े विकट थे ।
महुआ झरते फूल सुनहरे
पीपल झरते पात सुनो तुम ।।
खेतों में पकते अनाज की
खुशबू से मन भर जाता था ।
ढिबरी सांझ ढले जब जलती
घन से घन तम डर जाता था ।
धुले-धुले से मन सबके थे
नहीं कहीं थी घात सुनो तुम ।।
लिपे-पुते घर की देहरी पर
ख़ुशियों का बारहमासा था ।
राग रसोई का मौसम तो
अपने घर अच्छा खासा था ।
कितने मन से हम खाते थे
तरकारी और भात सुनो तुम ।।
विद्यालय था तीन कोस पर
कोस अढ़ाई था बाज़ार ।
दूरी बीच नहीं आती थी
चलते थे सब कारोबार ।
अपने आँगन से गंगातट
किलोमीटर सात सुनो तुम ।।
जब तुम कुछ लिख-पढ़ जाओगे
सचमुच आगे बढ़ जाओगे ।
बचपन अपना याद करोगे
घर आँगन आबाद करोगे ।
मीठी यादों ने खिड़की में
रक्खे होंगे कान सुनो तुम ।।