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"मन की चाह / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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तू मेरी होगी
 
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मन में मेरे चाह यही थी
 
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तू मिलेगी मुझको तेरा प्यार मिलेगा
 
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विरहाकुल मन को मेरे
 
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तेरे उर का सार का मिलेगा
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यही सोच मैं कलरव करता
 
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गाता मीठे गान
 
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पर बदल रही है भीतर से तू
 
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न था यह अनुमान
 
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सोच न पाया व्यथा मिलेगी
 
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दारुण हाहाकार मिलेगा
 
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तू मेरी प्रियतमा रूपवंता
 
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तुझसे नीरस संसार मिलेगा
 
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अवचेतन में स्तब्ध शून्य था
 
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बची जरा भी दाह नहीं थी
 
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दृष्टि धुँधली हो गई मेरी
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शेष अब कोई राह नहीं थी
 
शेष अब कोई राह नहीं थी
  
 
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(2002)
1999 में रचित
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11:33, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

तू मेरी होगी
मन में मेरे चाह यही थी

तू मिलेगी मुझको तेरा प्यार मिलेगा
विरहाकुल मन को मेरे
तेरे उर का सार का मिलेगा
यही सोच मैं कलरव करता
गाता मीठे गान
पर बदल रही है भीतर से तू
न था यह अनुमान
सोच न पाया व्यथा मिलेगी
दारुण हाहाकार मिलेगा
तू मेरी प्रियतमा रूपवंता
तुझसे नीरस संसार मिलेगा

अवचेतन में स्तब्ध शून्य था
बची जरा भी दाह नहीं थी

दृष्टि धुँधली हो गई मेरी
शेष अब कोई राह नहीं थी

(2002)