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"घर की याद-3 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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कोकिल मेरे ऊपर कूकी | कोकिल मेरे ऊपर कूकी | ||
फूलों से झर-झर सुरभि झरी | फूलों से झर-झर सुरभि झरी | ||
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− | केसर | + | केसर से दूर्वा ढकी हुई |
कितना एकांत यहाँ पर है | कितना एकांत यहाँ पर है |
21:44, 23 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मैं लता भवन में आ ठहरा
कोकिल मेरे ऊपर कूकी
फूलों से झर-झर सुरभि झरी
केसर से पीत हुई भ्रमरी
केसर से दूर्वा ढकी हुई
कितना एकांत यहाँ पर है
मैं इस कुंज में दूर्वा पर
लेटूँगा आज शांत होकर
जीवन में चल-चल कर, थक कर
ये पद जो गिरी पर सदा चढ़े
छोटी-सी घाटी में उतरे
सुनसान पर्वतों से होकर
घनघोर जंगलों में विचरे
ये पद विश्राम माँगते अब
इस हरी-भरी धरती में आ
जो पद न थके थे अभी कभी
वे अब न सकेंगे पल-भर भी