"वादिए फ़र्दा / मख़दूम मोहिउद्दीन" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़दूम मोहिउद्दीन |संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दू…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNazm}} | {{KKCatNazm}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''वादिए फ़र्दा'''<ref>आने | + | '''वादिए फ़र्दा'''<ref>आने वाले कल की घाटी</ref> |
राह में सर्व<ref>एक प्रकार का वृक्ष</ref> मिले | राह में सर्व<ref>एक प्रकार का वृक्ष</ref> मिले |
18:35, 31 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
वादिए फ़र्दा<ref>आने वाले कल की घाटी</ref>
राह में सर्व<ref>एक प्रकार का वृक्ष</ref> मिले
राह में शमशाद<ref>यह भी एक वृक्ष है जिससे नायिका के डील की उपमा दी जाती है</ref> मिले
सब गिरफ़्तार-ए-चमन
शामे गुलमर्ग मिली
सुभ पहलगाम मिली
राह में मिलते रहे, लाला-ओ-नसरीन-ओ-समन<ref>फूलों के नाम</ref>
गुनगुनाते हुए फूलों के बदन मिलते रहे
दिल की अफ़सुर्दः कली<ref>निराश कली</ref>
ऐसी वादी में भी आकर न खिली
दिल के ख़ुश होने का सामान
गुल-ओ-लाल न नसरीन-ओ-समन
झाड़ियाँ दर्द की
दुःख के जंगल
नद्दियाँ
जिनमें बहा करते हैं दिल के नासूर
कोह-ए-ग़म
नाग की मानिंद
सियह फन खोले
हर गुज़रगाह को खा जाते हैं
रात ही रात है, सन्नाटा ही सन्नाटा है ।
कोई साहिल भी नहीं
कोई किनारा भी नहीं
कोई जुगनू भी नहिं
कोई सितारा भी नहीं
मेरी इस वादिए फ़र्दा के, ओख़ुश पर तायर<ref>सुंदर परों वाला पक्षी</ref>
ये अंधेरा ही तेरी राहगुज़र
इस फ़ज़ा में कोई दरवाज़ा न दहलीज़ न दर
तेरी परवाज़<ref>उड़ने की शक्ति</ref> ही बन जाती है सामाने सफ़र
दामन-ए-कोंह<ref>पर्वत के नीचे</ref> में कोई नज़र आई है
तेरे ख़्वाब की ज़र्रीन<ref>सुनहरी</ref> सहर ।