भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यक्ष-प्रश्न / राजेश चड्ढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
बाहर हूं ,
 
बाहर हूं ,
 
तो-
 
तो-
दिखाई देता हूं ।
+
तुम्हें दिखाई देता हूं ।
 
सवाल ये है-
 
सवाल ये है-
 
कि आख़िर,
 
कि आख़िर,
 
मैं दिखता कैसा हूं ?
 
मैं दिखता कैसा हूं ?
 
</poem>
 
</poem>

20:31, 1 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

ख़ुद को ,
ख़ुद से
ढ़ूंढ़ कर,
ले आया हूं ,
भीतर से बाहर ।
भीतर था ,
तो मुझे ,
मैं-
दिखाई देता था ।
बाहर हूं ,
तो-
तुम्हें दिखाई देता हूं ।
सवाल ये है-
कि आख़िर,
मैं दिखता कैसा हूं ?