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"एक चिकना मौन / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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दाह खोती
 
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लीन होती हैं ।
 
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  उसी में रवहीन
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  तेरा
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    तेरा
  गूँजता है छंद :
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  ऋत विज्ञप्त होता है ।
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    ऋत विज्ञप्त होता है ।
  
 
एक काले घोल की-सी रात
 
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पुनीत
 
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गहरी नींद की ।
 
गहरी नींद की ।
  उसी में से तू
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  बढ़ा कर हाथ
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  सहसा खींच लेता-
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    सहसा खींच लेता-
  गले मिलता है ।
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    गले मिलता है ।
 
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19:14, 2 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

एक चिकना मौन
जिस में मुखर-तपती वासनाएँ
दाह खोती
लीन होती हैं ।
     उसी में रवहीन
     तेरा
     गूँजता है छंद :
     ऋत विज्ञप्त होता है ।

एक काले घोल की-सी रात
जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्त्तियाँ
सब पिघल जातीं
ओट पातीं
एक स्वप्नातीत, रूपातीत
पुनीत
गहरी नींद की ।
     उसी में से तू
     बढ़ा कर हाथ
     सहसा खींच लेता-
     गले मिलता है ।