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"माँ की तस्वीर / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं | घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं | ||
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जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला | जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला | ||
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उसने बाघ को भगाया घास काटी घर आकर | उसने बाघ को भगाया घास काटी घर आकर | ||
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आग जलाई और सबके लिए खाना पकाया | आग जलाई और सबके लिए खाना पकाया | ||
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मैं कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नहीं गया | मैं कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नहीं गया | ||
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कभी आग नहीं जलाई | कभी आग नहीं जलाई | ||
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मैं अक्सर एक ज़माने से चली आ रही | मैं अक्सर एक ज़माने से चली आ रही | ||
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पुरानी नक़्क़ाशीदार कुर्सी पर बैठा रहा | पुरानी नक़्क़ाशीदार कुर्सी पर बैठा रहा | ||
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जिस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं | जिस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं | ||
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माँ के चहरे पर मुझे दिखाई देती है | माँ के चहरे पर मुझे दिखाई देती है | ||
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एक जंगल की तस्वीर लकड़ी घास और | एक जंगल की तस्वीर लकड़ी घास और | ||
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पानी की तस्वीर खोई हुई एक चीज़ की तस्वीर | पानी की तस्वीर खोई हुई एक चीज़ की तस्वीर | ||
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(1990-1991 में रचित) | (1990-1991 में रचित) | ||
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17:32, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं
जब भी तस्वीर खिंचवाने का मौक़ा आता है
माँ घर में खोई हुई किसी चीज़ को ढूंढ रही होती है
या लकड़ी घास और पानी लेने गई होती है
जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला
पर वह डरी नहीं
उसने बाघ को भगाया घास काटी घर आकर
आग जलाई और सबके लिए खाना पकाया
मैं कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नहीं गया
कभी आग नहीं जलाई
मैं अक्सर एक ज़माने से चली आ रही
पुरानी नक़्क़ाशीदार कुर्सी पर बैठा रहा
जिस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं
माँ के चहरे पर मुझे दिखाई देती है
एक जंगल की तस्वीर लकड़ी घास और
पानी की तस्वीर खोई हुई एक चीज़ की तस्वीर
(1990-1991 में रचित)