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"नाकामी / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर

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मैने हरचन्द गमे-इश्क को खोना चाहा,
 
मैने हरचन्द गमे-इश्क को खोना चाहा,
 
 
गमे-उल्फ़त गमे-दुनिया मे समोना चाहा!
 
गमे-उल्फ़त गमे-दुनिया मे समोना चाहा!
 
 
 
  
 
वही अफ़साने मेरी सिम्त रवां हैं अब तक,  
 
वही अफ़साने मेरी सिम्त रवां हैं अब तक,  
 
 
वही शोले मेरे सीने में निहां हैं अब तक।
 
वही शोले मेरे सीने में निहां हैं अब तक।
  
 
वही बेसूद खलिश है मेरे सीने मे हनोज़,
 
वही बेसूद खलिश है मेरे सीने मे हनोज़,
 
 
वही बेकार तमन्नायें जवां हैं अब तक।
 
वही बेकार तमन्नायें जवां हैं अब तक।
  
 
वही गेसू मेरी रातो पे है बिखरे-बिखरे,
 
वही गेसू मेरी रातो पे है बिखरे-बिखरे,
 
 
वही आंखें मेरी जानिब निगरां हैं अब तक।
 
वही आंखें मेरी जानिब निगरां हैं अब तक।
 
 
 
  
 
कसरते-गम भी मेरे गम का मुदावा न हुई,
 
कसरते-गम भी मेरे गम का मुदावा न हुई,
 
 
मेरे बेचैन खयालों को सुकूं मिल ना सका।
 
मेरे बेचैन खयालों को सुकूं मिल ना सका।
  
 
दिल ने दुनिया के हर एक दर्द को अपना तो लिया,
 
दिल ने दुनिया के हर एक दर्द को अपना तो लिया,
 
 
मुज़महिल रूह को अंदाजे-जुनूं मिल न सका।
 
मुज़महिल रूह को अंदाजे-जुनूं मिल न सका।
 
 
 
 
  
 
मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही,
 
मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही,
 
 
मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही।
 
मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही।
  
 
वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल,
 
वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल,
 
 
वही बेरूह कशाकश वही बेचैन खयाल।
 
वही बेरूह कशाकश वही बेचैन खयाल।
 
 
 
  
 
आह! इस कश्म्कशे-सुबहो-मसा का अंजाम
 
आह! इस कश्म्कशे-सुबहो-मसा का अंजाम
 
 
मैं भी नाकाम, मेरी स‍यी-ए-अमला भी नाकाम॥
 
मैं भी नाकाम, मेरी स‍यी-ए-अमला भी नाकाम॥
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13:18, 6 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

मैने हरचन्द गमे-इश्क को खोना चाहा,
गमे-उल्फ़त गमे-दुनिया मे समोना चाहा!

वही अफ़साने मेरी सिम्त रवां हैं अब तक,
वही शोले मेरे सीने में निहां हैं अब तक।

वही बेसूद खलिश है मेरे सीने मे हनोज़,
वही बेकार तमन्नायें जवां हैं अब तक।

वही गेसू मेरी रातो पे है बिखरे-बिखरे,
वही आंखें मेरी जानिब निगरां हैं अब तक।

कसरते-गम भी मेरे गम का मुदावा न हुई,
मेरे बेचैन खयालों को सुकूं मिल ना सका।

दिल ने दुनिया के हर एक दर्द को अपना तो लिया,
मुज़महिल रूह को अंदाजे-जुनूं मिल न सका।

मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही,
मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही।

वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल,
वही बेरूह कशाकश वही बेचैन खयाल।

आह! इस कश्म्कशे-सुबहो-मसा का अंजाम
मैं भी नाकाम, मेरी स‍यी-ए-अमला भी नाकाम॥