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"मैं चाहता हूँ / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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प्रेम में बचकानापन बचा रहे
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कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा ।
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(1993)

22:49, 29 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण



मैं चाहता हूँ कि स्पर्श बचा रहे

वह नहीं जो कंधे छीलता हुआ

आततायी की तरह गुज़रता है

बल्कि वह जो एक अनजानी यात्रा के बाद

धरती के किसी छोर पर पहुँचने जैसा होता है


मैं चाहता हूँ स्वाद बचा रहे

मिठास और कड़वाहट से दूर

जो चीज़ों को खाता नहीं है

बल्कि उन्हें बचाए रखने की कोशिश का

एक नाम है


एक सरल वाक्य बचाना मेरा उद्देश्य है

मसलन यह कि हम इंसान हैं

मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे

सड़क पर जो नारा सुनाई दे रहा है

वह बचा रहे अपने अर्थ के साथ

मैं चाहता हूँ निराशा बची रहे

जो फिर से एक उम्मीद

पैदा करती है अपने लिए

शब्द बचे रहें

जो चिड़ियों की तरह कभी पकड़ में नहीं आते

प्रेम में बचकानापन बचा रहे

कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा ।


(1993)