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'''भाग-4'''
 
'''कृष्ण महिमा गान'''
 
 
::::'''(सुदामा )'''
 
 
कामधेनु सुरतरू सहित, दीन्हीं सब बलवीर ।
 
जानि पीर गुरू बन्धु जन, हरि हरि लीन्हीं पीर ।।87।।
 
 
विविध भॉति सेवा करी,.सुधा पियायो बाम ।
 
अति विनीत मृदु वचन कहि, सब पुरो मन काम ।।88।।
 
 
लै आयसु, प्रिय स्नान करि, सुचि सुगन्ध सब लाइ ।
 
पूजी गौरि सोहाग हित, प्रीति सहित सुख पाइ ।।89।।
 
 
षट्रस विविध प्रकार के, भोजन रचे बनाय ।
 
कंचन थार मंगाइ कै, रचि रचि धरे बनाय ।।90।।
 
 
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12:25, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

ठाडी पंडिताइन कहत मंजु भावन सों,
प्यारे परौं पाइन तिहारोई यह घरू है ।
आये चलि हरौं श्रम कीन्हों तुम भूरि दुःख,
दारिद गमायो यों हॅसत गह्यो करू है ।
रिद्धि सिद्धि दासी करि दीन्हीं अविनासी कृस्न,
पूरन प्रकासी , कामधेनु कोटि बरू है ।
चलो पति भूलो मति दीन्हों सुख जदुपति,
सम्पति सो लीजिये समेत सुरूतरू है ।।81।।

समझायो पुनि कन्त को, मुदित गई लै गेह ।
अन्हवायो तुरतहिं उबटि, सुचि सुगन्ध मलि देह ।।82।।

पूज्यो अधिक सनेह सों, सिंहासन बैठाय ।
सुचि सुगन्ध अम्बर रचे, बर भूसन पहिराय ।।83।।

सीतल जल अॅचवाइ कै, पानदान धरि पान ।
धर्यो आय आगे तुरत, छवि रवि प्रभा समान ।।84।।

झरहिं चौंर चहुँ ओर तें, रम्भादिक सब नारि ।
पतिव्रता अति प्रेम सों, ठाढी करै बयारि ।।85।।

स्वेत छत्र की छॉह, राज मैं शक्र समान ।
बहन गज रथ तुरंग वर, अरू अनेक सुभ यान ।।86।।

भाग-3 समाप्त