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+ | ऐड़ी-वैड़ी बात नीं है । | ||
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+ | अर मुगती पाऊं | ||
+ | उमर री पीड़ सूं | ||
+ | काढूं कांटा डील सूं | ||
+ | अर उण पीड़ पाछलै | ||
+ | सुख नै | ||
+ | जद जद भोगूं | ||
+ | लोग कैवै- | ||
+ | लिखी है कविता ।</poem> |
04:33, 19 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
लखदाद है बां नै
जिका झट देणी
घड़ काढै- कविता ।
लखदाद है बां नै
जिका झट देणी
लिख काढै- कविता ।
लखदाद है बां नै
जिका झट देणी
बणा'र बगा देवै- कविता ।
लखदाद है बां नै
जिका झट देणी
नक्की हुवै- कविता सूं ।
रामजी !
माफ करजो म्हनै
कविता म्हारै सारू
ऐड़ी-वैड़ी बात नीं है ।
क्यूं कै म्हैं
कसमसीजतो-कसमसीजतो सीझ परो
फगत लिखूं कीं ओळ्यां
अर मुगती पाऊं
उमर री पीड़ सूं
काढूं कांटा डील सूं
अर उण पीड़ पाछलै
सुख नै
जद जद भोगूं
लोग कैवै-
लिखी है कविता ।