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"निशान / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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फिर शायद कभी कुछ न सोचूँ
 
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काम में इतना बझ जाऊँगा
 
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कि कभी याद भी शायद न आए
 
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पर निशान तो रह ही जाएगा
 
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जैसे पपीते के पूरे शरीर पर
 
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खाँच
 
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हर पत्ते के टूटने की--
 
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हर क़दम की मोच
 
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वैसे ही केवल निशान
 
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13:36, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

फिर शायद कभी कुछ न सोचूँ
काम में इतना बझ जाऊँगा
कि कभी याद भी शायद न आए

पर निशान तो रह ही जाएगा
जैसे पपीते के पूरे शरीर पर
खाँच

हर पत्ते के टूटने की--
हर क़दम की मोच

वैसे ही केवल निशान