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"जेल में याद / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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बहुत याद आ रही है
 
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बहुत सारे लोग बहुत सारी चीज़ें कई बातें
 
बहुत सारे लोग बहुत सारी चीज़ें कई बातें
 
 
कड़ी धूप की तरह आँख पर गड़ रही हैं आज
 
कड़ी धूप की तरह आँख पर गड़ रही हैं आज
 
 
पता नहीं क्यों
 
पता नहीं क्यों
 
 
पता नहीं क्यों मुझे ऎसे लोग याद आ रहे हैं
 
पता नहीं क्यों मुझे ऎसे लोग याद आ रहे हैं
 
 
जिनसे कभी कोई ख़ास वास्ता भी नहीं रहा
 
जिनसे कभी कोई ख़ास वास्ता भी नहीं रहा
 
 
और कुछ ऎसी बातें
 
और कुछ ऎसी बातें
 
 
जिनके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं
 
जिनके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं
 
 
गहरे कुएँ का जल अचानक
 
गहरे कुएँ का जल अचानक
 
 
हिल रहा है
 
हिल रहा है
 
 
घने अन्धकार में चमक रहा है जल
 
घने अन्धकार में चमक रहा है जल
 
 
आज पता नहीं क्यों
 
आज पता नहीं क्यों
 
  
 
मुझे बार-बार अपने बच्चे की याद आ रही है
 
मुझे बार-बार अपने बच्चे की याद आ रही है
 
 
बार-बार घूम जा रहा है उसी का चेहरा
 
बार-बार घूम जा रहा है उसी का चेहरा
 
 
जैसे कि मैं कोई
 
जैसे कि मैं कोई
 
 
आईना होऊँ
 
आईना होऊँ
 
 
और वह बिल्कुल नाक सटाए ताक रहा हो मुझ में
 
और वह बिल्कुल नाक सटाए ताक रहा हो मुझ में
 
 
आँख पर रखता आँख
 
आँख पर रखता आँख
 
  
 
पर मैं उसे छू नहीं पाऊँगा
 
पर मैं उसे छू नहीं पाऊँगा
 
 
तप्त खपड़ी में फूटते चने-सा तड़पता रह जाऊँगा
 
तप्त खपड़ी में फूटते चने-सा तड़पता रह जाऊँगा
 
 
आज मैं सो नहीं पाऊँगा
 
आज मैं सो नहीं पाऊँगा
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13:37, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बहुत याद आ रही है
बहुत सारे लोग बहुत सारी चीज़ें कई बातें
कड़ी धूप की तरह आँख पर गड़ रही हैं आज
पता नहीं क्यों
पता नहीं क्यों मुझे ऎसे लोग याद आ रहे हैं
जिनसे कभी कोई ख़ास वास्ता भी नहीं रहा
और कुछ ऎसी बातें
जिनके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं
गहरे कुएँ का जल अचानक
हिल रहा है
घने अन्धकार में चमक रहा है जल
आज पता नहीं क्यों

मुझे बार-बार अपने बच्चे की याद आ रही है
बार-बार घूम जा रहा है उसी का चेहरा
जैसे कि मैं कोई
आईना होऊँ
और वह बिल्कुल नाक सटाए ताक रहा हो मुझ में
आँख पर रखता आँख

पर मैं उसे छू नहीं पाऊँगा
तप्त खपड़ी में फूटते चने-सा तड़पता रह जाऊँगा
आज मैं सो नहीं पाऊँगा