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"राजा अंधा है/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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'''राजा अंधा है'''
 
 
इस बस्ती का आलम यारों
 
इस बस्ती का आलम यारों
 
बड़ा निराला है,
 
बड़ा निराला है,
सांपों के भी पड़ी गले में  
+
साँपों के भी पड़ी गले में  
स्वागत माला है।
+
स्वागत माला है ।
 +
 
 
तेल चमेली का लगता है
 
तेल चमेली का लगता है
यहां छछूंदर के,
+
यहाँ छछूंदर के,
 
काली बिल्ली नोच रही है
 
काली बिल्ली नोच रही है
 
पंख कबूतर के,  
 
पंख कबूतर के,  
दीपक पी जाता खुद ही
+
दीपक पी जाता ख़ुद ही
अपना उजियाला है
+
अपना उजियाला है
जैसे मियां काठ का वैसी
+
 
 +
जैसा मियाँ काठ का वैसी
 
सन की दाढ़ी है,
 
सन की दाढ़ी है,
चोर सिपाही की आपस मे
+
चोर सिपाही की आपस में
 
यारी गाढ़ी है,
 
यारी गाढ़ी है,
म्ंदिर का हर एक पुजारी
+
मंदिर का हर एक पुजारी
पीता हाला है।
+
पीता हाला है ।
 +
 
 
अपना उल्लू सीधा करना
 
अपना उल्लू सीधा करना
सबका धंधा है।
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सबका धंधा है,
किससे हाल कहंे नगरी का  
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किससे हाल कहें नगरी का  
 
राजा अंधा है,
 
राजा अंधा है,
पढ़े लिखों के मुंह सुविधा का
+
पढ़े लिखों के मुँह सुविधा का
लटका ताला है।
+
लटका ताला है ।
 +
 
 
इस बस्ती का आलम यारों
 
इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है।।
+
बड़ा निराला है ।
 
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21:29, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है,
साँपों के भी पड़ी गले में
स्वागत माला है ।

तेल चमेली का लगता है
यहाँ छछूंदर के,
काली बिल्ली नोच रही है
पंख कबूतर के,
दीपक पी जाता ख़ुद ही
अपना उजियाला है ।

जैसा मियाँ काठ का वैसी
सन की दाढ़ी है,
चोर सिपाही की आपस में
यारी गाढ़ी है,
मंदिर का हर एक पुजारी
पीता हाला है ।

अपना उल्लू सीधा करना
सबका धंधा है,
किससे हाल कहें नगरी का
राजा अंधा है,
पढ़े लिखों के मुँह सुविधा का
लटका ताला है ।

इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है ।