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"जन्नत का नज़ारा/ प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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+ | बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें ! | ||
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08:19, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये !
वाह क्या बात है !
यह है जन्नत का नज़ारा !
यहाँ तो चार पर ही मन मार कर रह जाना पड़ता है ,
और वे चारों भी समय के साथ ,
कितनों की माँ बन-बन कर हो जाती हैं रूढ़ी, पुरानी ,
अल्लाह की रहमत !
बहत्तर कुआँरियां ,
हमेशा जवान रहेंगी ,हर समय तुम्हारा मुँह देखेंगी ,राह तकेंगी !
न माँ ,न बहन ,न बेटी ,
ये सब फ़लतू के रूप हैं औरत के !
सामने न आयें !
बस बहत्तर कुआँरियाँ और दिन रात भोग-विलास !
और हमें क्या चाहिये !
अल्लाह को ख़ुश करने के लिये ,
सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें ,
बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें !