भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूर्य-ग्रहण : 3 / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अरूण कमल
+
|रचनाकार=अरुण कमल
 +
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य
 
बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य
 
  
 
धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
 
धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
 
 
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
 
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
 
 
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
 
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
 
 
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
 
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
 
 
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
 
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
 
 
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
 
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
 
 
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
 
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
 
 
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई
 
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई
 
  
 
बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
 
बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
 
 
जो लूट सके सो लूट ।
 
जो लूट सके सो लूट ।
 
  
 
ऎसी सुन्दरता कौन काम की
 
ऎसी सुन्दरता कौन काम की
 
 
जिसके देखे दीदा फूटे ?
 
जिसके देखे दीदा फूटे ?
 +
</poem>

12:56, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य

धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई

बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
जो लूट सके सो लूट ।

ऎसी सुन्दरता कौन काम की
जिसके देखे दीदा फूटे ?