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"निस्पृह / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं | कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं | ||
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मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ | मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ | ||
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इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते | इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते | ||
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कभी न सोचा क्या होगा कल | कभी न सोचा क्या होगा कल | ||
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और खड़े हैं बिल्कुल नंगे । | और खड़े हैं बिल्कुल नंगे । | ||
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13:05, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा
कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं
मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ
इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते
कभी न सोचा क्या होगा कल
और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।