भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निस्पृह / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अरूण कमल
+
|रचनाकार=अरुण कमल
 +
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा
 
मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा
 
 
कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं
 
कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं
 
 
मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ
 
मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ
 
 
इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते
 
इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते
 
 
कभी न सोचा क्या होगा कल
 
कभी न सोचा क्या होगा कल
 
 
और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।
 
और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।
 +
</poem>

13:05, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा
कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं
मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ
इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते
कभी न सोचा क्या होगा कल
और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।