भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दो रोटी की खातिर / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | दो रोटी की खातिर | |
+ | कैसे-कैसे किए करम, | ||
+ | टके-टके पर बेचा | ||
+ | हमने अपना दीन-धरम । | ||
+ | |||
+ | माँगे आग नहीं दी हमने | ||
+ | कभी पड़ोंसी को, | ||
+ | पूड़ी-पुआ खिलाया घर में | ||
+ | बैठा दोषी को । | ||
+ | |||
+ | बदले रोज मुखौटे झूठी | ||
+ | खाई रोज़ क़सम । | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
कोमल सम्बन्धों की धरती | कोमल सम्बन्धों की धरती | ||
पर बबूल बोया , | पर बबूल बोया , | ||
स्वार्थ हुआ तो दुश्मन के भी | स्वार्थ हुआ तो दुश्मन के भी | ||
− | पैरों को | + | पैरों को धोया । |
− | + | ||
− | नये नये | + | रोज़ रचे घर से बाहर तक |
− | साथी से ले | + | नये नये तिकड़म । |
+ | |||
+ | साथी से ले कर्ज़ नहीं फिर | ||
लौटाया उसको, | लौटाया उसको, | ||
− | + | माँगे पर उल्टे ही डाँटा | |
− | अबे दिया | + | अबे दिया किसको । |
− | मातु पिता से कुशल न पूछी | + | |
− | + | मातु-पिता से कुशल न पूछी | |
− | टके टके पर बेचा हमने | + | धोई लाज-शरम , |
− | अपना दीन | + | टके-टके पर बेचा हमने |
+ | अपना दीन-धरम । | ||
</poem> | </poem> |
21:20, 5 मार्च 2012 के समय का अवतरण
दो रोटी की खातिर
कैसे-कैसे किए करम,
टके-टके पर बेचा
हमने अपना दीन-धरम ।
माँगे आग नहीं दी हमने
कभी पड़ोंसी को,
पूड़ी-पुआ खिलाया घर में
बैठा दोषी को ।
बदले रोज मुखौटे झूठी
खाई रोज़ क़सम ।
कोमल सम्बन्धों की धरती
पर बबूल बोया ,
स्वार्थ हुआ तो दुश्मन के भी
पैरों को धोया ।
रोज़ रचे घर से बाहर तक
नये नये तिकड़म ।
साथी से ले कर्ज़ नहीं फिर
लौटाया उसको,
माँगे पर उल्टे ही डाँटा
अबे दिया किसको ।
मातु-पिता से कुशल न पूछी
धोई लाज-शरम ,
टके-टके पर बेचा हमने
अपना दीन-धरम ।