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"भूसी की आग / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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जाड़े की रात थी | जाड़े की रात थी | ||
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मिट्टी की बोरसी में धान की भूसी की | मिट्टी की बोरसी में धान की भूसी की | ||
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थोड़ी-सी आग थी | थोड़ी-सी आग थी | ||
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आग के ऊपर | आग के ऊपर | ||
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एक दूसरे के तर-ऊपर | एक दूसरे के तर-ऊपर | ||
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कई जोड़े हाथ थे | कई जोड़े हाथ थे | ||
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अपने को सेंकते, | अपने को सेंकते, | ||
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तभी किसी बच्चे ने | तभी किसी बच्चे ने | ||
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लोहे की सींक से आग उकटेरी | लोहे की सींक से आग उकटेरी | ||
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और धाह फेंकती लाल आग | और धाह फेंकती लाल आग | ||
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को देख कर सबने सोचा-- | को देख कर सबने सोचा-- | ||
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भूसी की आग भी बड़ी तेज़ होती है । | भूसी की आग भी बड़ी तेज़ होती है । | ||
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13:09, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जाड़े की रात थी
मिट्टी की बोरसी में धान की भूसी की
थोड़ी-सी आग थी
आग के ऊपर
एक दूसरे के तर-ऊपर
कई जोड़े हाथ थे
अपने को सेंकते,
तभी किसी बच्चे ने
लोहे की सींक से आग उकटेरी
और धाह फेंकती लाल आग
को देख कर सबने सोचा--
भूसी की आग भी बड़ी तेज़ होती है ।