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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 25" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 241 से 250 तक'''
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245)
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मेहि मूढ़ मन बहुत बिगोयो।
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याके लिये सुनहु करूनामय, मैं जग जनमि-जनमि दुख रोयो।।
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सीतल, मधुर, पियूष सहज सुख निकटहि रहत दूरि जनु खोयो।
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बहु भाँतिन स्त्रम करत मोहबस,बृथहि मंदमति बारि बिलोयो।।
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करम-कीच जिय जानि, सानिचित, चाहत कुटिल मलहि मल धोयो।
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तृषावंत सुरसरि बिहाय सठ फिरि-फिरि बिकल अकास निचोयो।।
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तुलसिदास प्रभु! कृपा करहु अब, मैं निज दोष कछू नहिं गोयो।
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डासत ही बीति गयी निसा सब, कहहूँ न नाथ! नींद भरि सोयो।।
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07:58, 17 जून 2012 के समय का अवतरण