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"आप भी आइए / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए
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दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।
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ज़हर पी जाइए और बॉंटिए अमृत सबको
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ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
 
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
  
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं भी,
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वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,
 
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ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
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शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
 
शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
 
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कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।
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19:01, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण

आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं दोस्‍त बनाते रहिए।

ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।

वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।