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"अब अगर आओ तो / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
 
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सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
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मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
 
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दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
 
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ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना
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प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
 
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चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
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तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
 
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
  
 
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
 
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मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
 
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
 
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तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना
तुम कांई रस्‍म निभाने के लिए मत आना
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18:57, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना