Last modified on 17 जून 2012, at 07:11

"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 19" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
}}
+
|संग्रह=विनयावली / तुलसीदास
{{KKCatKavita}}
+
}}  
[[Category:लम्बी रचना]]
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 1]]
{{KKPageNavigation
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 2]]
|पीछे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 18
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 3]]
|आगे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 20
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 4]]
|सारणी=विनयावली() / तुलसीदास  
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 5]]
}}
+
<poem>
+
'''पद 181 से 190 तक'''
+
 
+
(181)
+
 
+
श्री केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये।
+
 
+
मोको और ठौर न, सुटेक एक तेरिये।
+
+
सहस सिलातें अति जड़ मति भई है।
+
 
+
कासों कहौं कौन गति पाहनहिं दई है।
+
 
+
पद-राग-जाग चहौं  कौसिक ज्यों कियो हौं।
+
 
+
कलि-मल खल देखि भारी भीति भियो हैा।
+
+
करम -कपीस बालि-बली,त्रास-त्रस्यो हौं।
+
 
+
चाहत अनाथ-नाथ! तेरी बाँह बस्यो हौ।
+
 
+
महा मोह-रावन बिभीषन ज्यों हयो हौ।
+
 
+
त्राहि, तुलसिदास! त्राहि, तिहूँ ताप तयो हौ।
+
 
+
</poem>
+

07:11, 17 जून 2012 के समय का अवतरण