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'''वन में '''
 
  
प्रेम सों पीछें तिरीछें प्रियाहि चितै चितु दै चले लै चितु चोरैं।
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'''भाग-3 अरण्य काण्ड प्रारंभ'''
  
स्याम समीर पसेउ लसै हुलसै ‘तुलसी’ छाबि सेा मन मोरेैं।
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'''(मारीचानुधावन)'''
  
लोचन लोल, चलैं भृकुटी कल काम कमानहु सेा तृनु तोरैं।
 
 
 
राजत राम कुरंगके संग निषंगु कसे धनुसों सरू जोरैं।26।
 
  
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पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
  
सर चारिक चारू बनाइ कसें कटि, पानि सरासनु सायकु लै।
 
  
बन खेलत रामु फिरैं मृगया, ‘तुलसी’ छबि सो बरनै किमि कै।।
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सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
  
अवलोकि अलौकिक रूपु मृगीं मृग चौकि चकैं, चितवैं चितु दै।।
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देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।
न डगैं जियँ जानि जियँ सिलीमुख पंच धरैं रति नायकु है।27।
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बिंधिके बासी उदासी तपी ब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
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गौतमतीय तरी ‘तुलसी’ सो कथा सुनि भे मुनिबृंद सुखारे।।
 
  
ह्वैहैं  सिला सब चंदमखीं परसें पद मंजुल कंज तिहारे।
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हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।
  
कीन्ही भली रघुनायकजू! करूना करि काननको पगु धारें।28।
 
  
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'''(इति अरण्य काण्ड )'''
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20:08, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


भाग-3 अरण्य काण्ड प्रारंभ

(मारीचानुधावन)


पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।


सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।

 
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।


हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।


(इति अरण्य काण्ड )