भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 14" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
+
 
(मारीचानुधावन)
+
'''भाग-3 अरण्य काण्ड प्रारंभ'''
 +
 
 +
'''(मारीचानुधावन)'''
  
  
पंक्ति 27: पंक्ति 29:
  
  
(इति अरण्य काण्ड )
+
'''(इति अरण्य काण्ड )'''
 
        
 
        
 
</poem>
 
</poem>

20:08, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


भाग-3 अरण्य काण्ड प्रारंभ

(मारीचानुधावन)


पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।


सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।

 
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।


हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।


(इति अरण्य काण्ड )