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+ | वह कह रहा था... अच्छा अच्छा ! | ||
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+ | एक शाश्वत प्यास छिपाए हुए | ||
− | + | हेमंत-- यह कैसे हो सकता था हेमंत | |
− | + | तीस साल तीस साल तो इस नौजवान की | |
− | + | उम्र भी नहीं है गाफ़िल ! | |
− | + | यह उस हेमंत का बेटा भी नहीं हो सकता | |
− | + | इतना हमशक्ल होने पर कौन | |
− | + | कमअक़्ल होगा कि | |
− | + | अपने बाप की नक़ल बना फिरे | |
− | + | तुम जो भी कोई हो -- क्या सचमुच हो ? | |
− | + | या यह भी एक दिवास्वप्न है हेमंत द्वितीय ? | |
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− | तीस साल तीस साल तो इस नौजवान की | + | |
− | उम्र भी नहीं है गाफ़िल ! | + | |
− | यह उस हेमंत का बेटा भी नहीं हो सकता | + | |
− | इतना हमशक्ल होने पर कौन | + | |
− | कमअक़्ल होगा कि | + | |
− | अपने बाप की नक़ल बना फिरे | + | |
− | तुम जो भी कोई हो -- क्या सचमुच हो ? | + | |
− | या यह भी एक दिवास्वप्न है हेमंत द्वितीय ?< | + |
18:55, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कॉफ़ी होम में घुसते ही मुझे दिखाई दिया
हेमंत कोई तीस साल बाद- - वही चेहरा वही घुँघराले बाल
समझदारी और पलायन से भरी वही
शर्मीली हँसी
कोई युवती आहिस्ता-आहिस्ता उससे
कुछ कह रही थी
ऊपर नीचे कठपुतली की तरह सर हिलाते हुए
वह कह रहा था... अच्छा अच्छा !
जी...हाँ...एकदम- -बिल्कुल
यह कम्बख़्त बिल्कुल नहीं बदला
बेतकल्लुफ़ आवेग से मैं उसकी तरफ बढ़ा
उसने मुझे देखा और नहीं भी देखा
फिर उसी तरह सर हिलाने में मशग़ूल हो गया
जैसी ही मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा -
‘इस शहर में कब से हो हेमंत ! ’
मैं जान गया यह हेमंत नहीं है
वह भी जान गया कि वह हेमंत नहीं है
एक बनावटी लेकिन उदार मुस्कुराहट से उसने
यह मामला रफ़ा दफ़ा किया
कॉफ़ी हाउसों में अक्सर इसी तरह
मंडराता रहता है अतीत
और घूमते रहते हैं कुछ खिसियाए हुए से
गंजे प्रेत
एक शाश्वत प्यास छिपाए हुए
हेमंत-- यह कैसे हो सकता था हेमंत
तीस साल तीस साल तो इस नौजवान की
उम्र भी नहीं है गाफ़िल !
यह उस हेमंत का बेटा भी नहीं हो सकता
इतना हमशक्ल होने पर कौन
कमअक़्ल होगा कि
अपने बाप की नक़ल बना फिरे
तुम जो भी कोई हो -- क्या सचमुच हो ?
या यह भी एक दिवास्वप्न है हेमंत द्वितीय ?