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"मन चाहे यह / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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नहीं | नहीं | ||
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दिल नहीं करता अब | दिल नहीं करता अब | ||
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यहाँ विदेश में रहने का | यहाँ विदेश में रहने का | ||
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मन चाहे यह | मन चाहे यह | ||
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मैं अपने भूखे-नंगे | मैं अपने भूखे-नंगे | ||
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जन-गण के पास जाऊँ | जन-गण के पास जाऊँ | ||
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कष्ट में है जो पीड़ा में | कष्ट में है जो पीड़ा में | ||
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है दुश्मन के फेरे में | है दुश्मन के फेरे में | ||
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साम्प्रदायिकता के घेरे में | साम्प्रदायिकता के घेरे में | ||
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तकलीफ़देह, घुटन भरे हैं दिन | तकलीफ़देह, घुटन भरे हैं दिन | ||
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उन्होंने डुबो दिया मेरे जन-गण को | उन्होंने डुबो दिया मेरे जन-गण को | ||
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मन्दिर-मस्ज़िद के अँधेरे में | मन्दिर-मस्ज़िद के अँधेरे में | ||
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काल है यह बदतर अन्यायी | काल है यह बदतर अन्यायी | ||
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उजाले पर | उजाले पर | ||
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फिरी हुई है स्याही | फिरी हुई है स्याही | ||
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निराशा भरे इस विकट समय में | निराशा भरे इस विकट समय में | ||
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साथ उसका निभाऊँ | साथ उसका निभाऊँ | ||
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मैं अपने जन-गण के पास जाऊँ | मैं अपने जन-गण के पास जाऊँ | ||
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(2004 में मास्को में रचित) | (2004 में मास्को में रचित) | ||
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12:23, 8 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
नहीं
दिल नहीं करता अब
यहाँ विदेश में रहने का
मन चाहे यह
मैं अपने भूखे-नंगे
जन-गण के पास जाऊँ
कष्ट में है जो पीड़ा में
है दुश्मन के फेरे में
साम्प्रदायिकता के घेरे में
तकलीफ़देह, घुटन भरे हैं दिन
उन्होंने डुबो दिया मेरे जन-गण को
मन्दिर-मस्ज़िद के अँधेरे में
काल है यह बदतर अन्यायी
उजाले पर
फिरी हुई है स्याही
निराशा भरे इस विकट समय में
साथ उसका निभाऊँ
मैं अपने जन-गण के पास जाऊँ
(2004 में मास्को में रचित)