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उचकी वह पंजों पर थोड़ा-सा
 
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फिर मेरी ओर होंठ बढ़ाए
 
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चूमा उसे मैं ने यों, ज्यों मारा कोड़ा-सा
 
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यह अहम हमारा हमें लड़ाए
 
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फिर झरने लगे आँसू वहाँ निरंतर
 
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धुल गए बोझल से वे पल-छिन
 
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सावन की बारिश में निःस्वर
 
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डूब गया वह उदास दिन
 
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(2006 में रचित)
 
(2006 में रचित)
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11:24, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

उचकी वह पंजों पर थोड़ा-सा
फिर मेरी ओर होंठ बढ़ाए
चूमा उसे मैं ने यों, ज्यों मारा कोड़ा-सा
यह अहम हमारा हमें लड़ाए

फिर झरने लगे आँसू वहाँ निरंतर
धुल गए बोझल से वे पल-छिन
सावन की बारिश में निःस्वर
डूब गया वह उदास दिन

(2006 में रचित)