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हरे पेडों के झुंड ने कहा-- | हरे पेडों के झुंड ने कहा-- |
01:17, 23 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
तुम बहुत दूर हों और मैं यहाँ
हमारे बीच की इस लंबी दूरी को
गुज़ार रहा हूँ
रात और दिन को विदा करते हुए
पीड़ा से दिल दुखता है ।
अपने इस दुख को भूलाने,
चुपचाप तुम्हारे पास पहुँचने
और फिर फुसफुसाते हुए
तुमसे साँत्वना के
कुछ शब्द कहने के लिए
मैने आकाश में एक बादल को खोजना चाहा
लेकिन आकाश में धधकता हुआ
सूरज ही दिखाई दिया
मैंने मोर को ढूँढ़ा
तो दिखाई दिए उसके पंख
किसी ने उसकी हत्या कर दी थी
कहानियों को सोचकर
एक तोता गुनगुना सकता
मैंने एक तोते को ढूँढा
अनाजहीन खेत रो पड़ा
हरे पेडों के झुंड ने कहा--
वह नहीं आएगी
लेकिन तुम अगर उससे मिलो
तो बताना उसे
गुलदाउदी भी अपने अंतिम समय में
उसका इंतज़ार कर रही है
फिर बिलखते हुए मैं आगे बढ़ा...
तुम बहुत दूर हो और मैं यहाँ
रात और दिन को विदा करते हुए
पीड़ा से गुज़रते हुए
कोई नहीं है
तुम तक मेरा संदेश पहुँचानेवाला
कोई नहीं है ।
मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स