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"स्वर / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
 
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समय-तार बजा कर जो जगे,
 
समय-तार बजा कर जो जगे,
 
 
रँग गई धरती अनुराग से,
 
रँग गई धरती अनुराग से,
 
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गगन में नवगुंजन छा गया
गगन में नवगुंजन छा गया.
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05:09, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
समय-तार बजा कर जो जगे,
रँग गई धरती अनुराग से,
गगन में नवगुंजन छा गया ।