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रावण ओर मंदोदरी
 
  
'''( छंद संख्या 17 से 18 )'''
 
  
(17)
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राक्षस बानर संग्राम
  
कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु,
+
'''( छंद संख्या 30, 31 )'''
  बदत मंदोदरी परम भीता।
+
  
सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी,
+
(30)
  परसुधर गर्बु जेहि देखि  बीता।।
+
 
 +
रोष्यो रन रावनु , बोलाए बीर बानइत,
 +
  जानत जे रीति सब संजुग समाजकी।
  
दास तुलसी समरसूर कोसलधनी,
+
चली चतुरंग चमु, चपरि हने निसान,
  ख्याल हीं बालि बलसालि जीता।
+
  सेना सराहन जोग रातिचरराजकी।
  
रे कंत! त्ृान गहि ‘सरन श्रीरामु’ कहि,  
+
तुलसी बिलोकि कपि-भालु किलकत,  
अजहूँ एहि भाँतिल ै सौंपु सीता।17।
+
ललकत लखि ज्यों कँगाल पातरी सुनाजकी।
  
(18)
+
रामरूख निरखि हरष्यो हियँ हनूमानु,
 +
मानो खेलवार खोली सीसताज बाजकी।।
  
रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का,  
+
(31)
भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों ।
+
 
 +
साजि कै सनाह -गजगाह सउछाह दल,  
 +
महाबली धाए बीर जातुधान धीरके।।
  
सहज दसचारि खल सहित खर-दूषनहिं,
+
  तुलसी तमकि-ताकि भिरे भारी जुद्ध क्रु्््ुद्ध,  
पैठै जमधाम, तैं तउ न चीन्ह्यों।।
+
सेनप सराहे निज निज भट भीरके।
  
मैं जो कहौं, कंत! स्ुनु मंतु भगवंतसो,
+
रूंडनके झुंड झूमि-झूमि झुकरे-से नाचैं,
  बिमुख ह्वै बालि फलु कौन लीन्ह्यो।
+
  समर सुमार सूर मारैं रघुबीरके।31।
  
बीस भुज, दस सीस खीस गए तबहिं जब,
 
ईसके ईससों बैरू कीन्ह्यो।18।
 
  
 
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19:28, 4 मई 2011 के समय का अवतरण



राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 30, 31 )

(30)
  
रोष्यो रन रावनु , बोलाए बीर बानइत,
 जानत जे रीति सब संजुग समाजकी।

चली चतुरंग चमु, चपरि हने निसान,
 सेना सराहन जोग रातिचरराजकी।

तुलसी बिलोकि कपि-भालु किलकत,
ललकत लखि ज्यों कँगाल पातरी सुनाजकी।

रामरूख निरखि हरष्यो हियँ हनूमानु,
मानो खेलवार खोली सीसताज बाजकी।।

(31)
  
साजि कै सनाह -गजगाह सउछाह दल,
महाबली धाए बीर जातुधान धीरके।।

 तुलसी तमकि-ताकि भिरे भारी जुद्ध क्रु्््ुद्ध,
सेनप सराहे निज निज भट भीरके।

 रूंडनके झुंड झूमि-झूमि झुकरे-से नाचैं,
 समर सुमार सूर मारैं रघुबीरके।31।