भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिनचर्या / धूमिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा, हम बुझी हुई बत्तियों को इकट्ठा करेंगे ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
 
+
|रचनाकार=धूमिल
 
+
|संग्रह = कल सुनना मुझे / धूमिल
 +
}}
  
  
पंक्ति 11: पंक्ति 12:
 
इकट्ठा करेंगे और
 
इकट्ठा करेंगे और
  
आपस में बांट लेंगे.
+
आपस में बाँट लेंगे.
  
  
पंक्ति 36: पंक्ति 37:
 
अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे
 
अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे
  
दुःखी होंगे.
+
दुःखी होंगे

23:41, 4 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण


सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा,

हम बुझी हुई बत्तियों को

इकट्ठा करेंगे और

आपस में बाँट लेंगे.


दुपहर जब कहीं बर्फ नहीं होगी

और न झड़ती हुई पत्तियाँ

आकाश नीला और स्वच्छ होगा

नगर क्रेन के पट्टे में झूलता हुआ

हम मोड़ पर मिलेंगे और

एक दूसरे से ईर्ष्या करेंगे.


रात जब युद्ध एक गीत पंक्ति की तरह

प्रिय होगा हम वायलिन को

रोते हुए सुनेंगे

अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे

दुःखी होंगे