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"लोहे का स्वाद / धूमिल" के अवतरणों में अंतर
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आदमी को पढ़ो | आदमी को पढ़ो | ||
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लोहे की आवाज है या | लोहे की आवाज है या |
09:35, 8 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण
"शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग"
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुँह में लगाम है.
(यह धूमिल की अंतिम कविता मानी जाती है )