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"चबूतरा / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

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चबूतरे पर बैठी औरतें करती हैं बातें
 
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सिर-पैर नहीं कोई
 
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भर देती हैं कभी गहरी उदासी  
 
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और खीझ से ।
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निपटाकर कामकाज
 
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बैठी हैं घेरकर चबूतरा
 
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दमक रहे हैं सबके चेहरे
 
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चेहरे पर किसी के कुछ ज़्यादा ही नमक  
 
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हाथ नहीं किसी के ख़ाली
 
हाथ नहीं किसी के ख़ाली
 
 
भरे हैं फुर्सत से भरे कामों से ।
 
भरे हैं फुर्सत से भरे कामों से ।
 
 
  
 
कहती है उनमें से एक  
 
कहती है उनमें से एक  
 
 
जन्मा है फ़लाँ ने बच्चा
 
जन्मा है फ़लाँ ने बच्चा
 
 
बढ़ जाएगा क़द उसका एक इंच
 
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मिलती हैं सब उसकी हीँ में हीँ
 
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निकलती है फिर नई बात ।
 
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क्या जन्मने से बच्चा बढ़ता है क़द ?
 
क्या जन्मने से बच्चा बढ़ता है क़द ?
 
 
क्यों नहीं बढ़ा फिर माँ का क़द ?
 
क्यों नहीं बढ़ा फिर माँ का क़द ?
 
 
बताती है बहन
 
बताती है बहन
 
 
बढ़ता है क़द बेटा जन्मने से
 
बढ़ता है क़द बेटा जन्मने से
 
 
जन्मी हैं माँ ने आठ बेटियाँ ।
 
जन्मी हैं माँ ने आठ बेटियाँ ।
 
 
  
 
बुझाकर बत्ती लेटते हैं हम बिस्तरे पर
 
बुझाकर बत्ती लेटते हैं हम बिस्तरे पर
 
 
गहरी उदासी और अनमने भाव से
 
गहरी उदासी और अनमने भाव से
 
 
सोचते हुए माँ के बारे में
 
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खींचे उसके जीवन के अनन्य चित्र
 
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भरे हम सबने पहली बार एक से रंग ।
 
भरे हम सबने पहली बार एक से रंग ।
 
 
  
 
हमारे सपनों को सँजोती
 
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चिंता करती हमारे भविष्य की
 
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रहती है कैसी उदास
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बैठती नहीं कभी चबूतरे पर
 
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फ़ुर्सत से भरे कामों को निपटाते
 
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सोचती है वह हमारे घरों के बारे में ।
 
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11:14, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण

चबूतरे पर बैठी औरतें करती हैं बातें
सिर-पैर नहीं कोई
अनंत तक फैली
कभी न ख़त्म होने वाली
भर देती हैं कभी गहरी उदासी
और खीझ से ।

निपटाकर कामकाज
बैठी हैं घेरकर चबूतरा
दमक रहे हैं सबके चेहरे
चेहरे पर किसी के कुछ ज़्यादा ही नमक
हाथ नहीं किसी के ख़ाली
भरे हैं फुर्सत से भरे कामों से ।

कहती है उनमें से एक
जन्मा है फ़लाँ ने बच्चा
बढ़ जाएगा क़द उसका एक इंच
मिलती हैं सब उसकी हीँ में हीँ
होती हैं ख़ुश-
निकलती है फिर नई बात ।

क्या जन्मने से बच्चा बढ़ता है क़द ?
क्यों नहीं बढ़ा फिर माँ का क़द ?
बताती है बहन
बढ़ता है क़द बेटा जन्मने से
जन्मी हैं माँ ने आठ बेटियाँ ।

बुझाकर बत्ती लेटते हैं हम बिस्तरे पर
गहरी उदासी और अनमने भाव से
सोचते हुए माँ के बारे में
खींचे उसके जीवन के अनन्य चित्र
भरे हम सबने पहली बार एक से रंग ।

हमारे सपनों को सँजोती
चिंता करती हमारे भविष्य की
रहती है कैसी उदास
बैठती नहीं कभी चबूतरे पर
फ़ुर्सत से भरे कामों को निपटाते
सोचती है वह हमारे घरों के बारे में ।