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नाम-पता / शिवदयाल

18 bytes added, 16:23, 19 मई 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदयाल
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>  उड़ रही हैं हर तरफतरफ़
सूचनाओं की चिन्दियाँ
 
जिसने जितनी कतरनें
 
जमा कर ली हैं
उतना ताक़तवर बन बैठा है।
उतना ताकतवर बन बैठा है।  धरती के दुःखोंदुखों-क्लेशों पर 
सूचनाच्छादित आकाश
 बरसा रहा है सूचनाएँ! 
लोग मशगूल हैं
 दूसरी चीजोंचीज़ों, दूसरे लोगों के बारे में 
जानकारियाँ जमा करने में,
 अपने से बेखबरबेख़बरवे हो रहे हैं बाखबरबाख़बर
इस दौर में
 
जबकि दुनिया एक हो रही है
 
सब दिशाएँ मिल रही हैं
 
सब भेद-अभेद मिट रहे हैं
 
अच्छा रहेगा
 
कि अपना नाम-पता
 
तकिए के नीचे रखकर सोया जाए
 
क्या पता किस क्षण
 खुद ख़ुद की याद हो आए 
और कोई दूसरा
 
हमें हमारी राह दिखाए!
</poem>
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