"ओमप्रकाश वाल्मीकि / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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'''ओमप्रकाश वाल्मीकि''' | '''ओमप्रकाश वाल्मीकि''' | ||
जन्म : 30 जून 1950, बरला, मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश, भारत। | जन्म : 30 जून 1950, बरला, मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश, भारत। | ||
− | शिक्षा : | + | निधन : 17 नवंबर 2013 |
+ | शिक्षा : एम० ए० (हिन्दी) | ||
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह - सदियों का संताप¸ बस्स बहुत हो चुका, आत्मकथा-जूठन, कहानी संग्रह- सलाम¸ घुसपैठिए, | प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह - सदियों का संताप¸ बस्स बहुत हो चुका, आत्मकथा-जूठन, कहानी संग्रह- सलाम¸ घुसपैठिए, | ||
− | आलोचना-दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र । | + | आलोचना-दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र । डॉ० अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार । साहित्यभूषण पुरस्कार । |
− | संपर्क : सी/5/2 ऑर्डनेन्स फैक्टरी इस्टेट, देहरादून - 248008 email : opvalmiki@gmail.com मो० ०९४१२३१९०३४ | + | संपर्क : सी / 5 / 2 ऑर्डनेन्स फैक्टरी इस्टेट, देहरादून - 248008 email : opvalmiki@gmail.com मो० ०९४१२३१९०३४ |
ओमप्रकाश वाल्मीकि(१९५०) का जन्म ग्राम बरला, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े। वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डा०. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। आजकल वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फॅक्टरी में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय-अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डा० अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सदियों का संताप, बस ! बहुत हो चुका (कविता संग्रह}, सलाम (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा)। | ओमप्रकाश वाल्मीकि(१९५०) का जन्म ग्राम बरला, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े। वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डा०. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। आजकल वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फॅक्टरी में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय-अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डा० अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सदियों का संताप, बस ! बहुत हो चुका (कविता संग्रह}, सलाम (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा)। | ||
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ओमप्रकाश वाल्मीकि
जन्म : 30 जून 1950, बरला, मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश, भारत।
निधन : 17 नवंबर 2013
शिक्षा : एम० ए० (हिन्दी)
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह - सदियों का संताप¸ बस्स बहुत हो चुका, आत्मकथा-जूठन, कहानी संग्रह- सलाम¸ घुसपैठिए,
आलोचना-दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र । डॉ० अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार । साहित्यभूषण पुरस्कार ।
संपर्क : सी / 5 / 2 ऑर्डनेन्स फैक्टरी इस्टेट, देहरादून - 248008 email : opvalmiki@gmail.com मो० ०९४१२३१९०३४
ओमप्रकाश वाल्मीकि(१९५०) का जन्म ग्राम बरला, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े। वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डा०. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। आजकल वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फॅक्टरी में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय-अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डा० अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सदियों का संताप, बस ! बहुत हो चुका (कविता संग्रह}, सलाम (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा)।