भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपने हिस्से की छाया / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>मैं थक गया ठूंठ कहत…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
छाया अपने हिस्से की | छाया अपने हिस्से की | ||
अपने हिस्से की छाया । | अपने हिस्से की छाया । | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
02:52, 15 मई 2013 के समय का अवतरण
मैं थक गया
ठूंठ कहता है-
यह भी कोई जीना है
लाओ तुम्हारी कुलहाड़ी ।
मैं पहचानता हूं
प्रार्थना के भीतर छिपी लाचारी
ठूंठ करता है प्रणाम
मुक्ति की कामना में !
ठूंठ के हाथ डरते हैं
जड़ों से
और मेरे हाथ
कुलहाड़ी से ।
ठूंठ के भीतर
अभी तक मैं देखता हूं
एक लक-दक वृक्ष
और अपने हिस्से की छाया ।
खेलती है छुप्म-छुप्पी
ऋतुओं के संग
छाया अपने हिस्से की
अपने हिस्से की छाया ।