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"इस कठिन दौर में / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

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किसी शोक सभा में अब
 
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जाना होगा तुम्हें
 
जाना होगा तुम्हें
 
 
पूरी तरह बेफ़िक्र और तैयार
 
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एक और शोक के लिए…
 
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कह देना होगा तुम्हें
 
कह देना होगा तुम्हें
 
 
मासूम अपनी पत्नी
 
मासूम अपनी पत्नी
 
 
और असमय प्रौढ हो रहे
 
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अपने बच्चों से…
 
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समझदार हो
 
समझदार हो
 
 
बहुत देर तक न लौटूं
 
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तो समझ लेना…
 
तो समझ लेना…
 
  
 
इतना ही नहीं  
 
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कि तुम किसी क्षण
 
कि तुम किसी क्षण
 
 
मारे जा सकते हो…
 
मारे जा सकते हो…
 
  
 
श्मशान या कब्रिस्तान  
 
श्मशान या कब्रिस्तान  
 
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की शवयात्रा में
तक पहुंचने के पहले
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खो सकती है
 
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रास्ते में खो सकती है
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तुम्हारी लाश…
 
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और खो सकते हैं
 
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तुम्हारे शोक
 
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तुम्हारे आंसू…  
 
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और तब तुम्हें
 
और तब तुम्हें
 
 
न कोई शोक हिला सकेगा
 
न कोई शोक हिला सकेगा
 
 
और न ही कोई सुख  
 
और न ही कोई सुख  
 
  
 
तुम्हारे इस कठिन दौर में
 
तुम्हारे इस कठिन दौर में
 
 
नहीं होगा कोई
 
नहीं होगा कोई
 
 
तुम्हारे संग
 
तुम्हारे संग
 
 
फिर भी तुम
 
फिर भी तुम
 
 
निस्संग नहीं होगे
 
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नहीं होगा अब
 
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तुम्हारे सामने शोक  
 
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या सुख का कोई विकल्प
 
या सुख का कोई विकल्प
 
 
लेकिन तुम
 
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निर्विकल्प भी नहीं होगे…</poem>
 
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21:31, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


किसी शोक सभा में अब
जाना होगा तुम्हें
पूरी तरह बेफ़िक्र और तैयार
एक और शोक के लिए…

कह देना होगा तुम्हें
मासूम अपनी पत्नी
और असमय प्रौढ हो रहे
अपने बच्चों से…
समझदार हो
बहुत देर तक न लौटूं
तो समझ लेना…

इतना ही नहीं
कि तुम किसी क्षण
मारे जा सकते हो…

श्मशान या कब्रिस्तान
की शवयात्रा में
खो सकती है
तुम्हारी लाश…

और खो सकते हैं
तुम्हारे शोक
तुम्हारे आंसू…

और तब तुम्हें
न कोई शोक हिला सकेगा
और न ही कोई सुख

तुम्हारे इस कठिन दौर में
नहीं होगा कोई
तुम्हारे संग
फिर भी तुम
निस्संग नहीं होगे

नहीं होगा अब
तुम्हारे सामने शोक
या सुख का कोई विकल्प
लेकिन तुम
निर्विकल्प भी नहीं होगे…