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"प्यार का रंग / नचिकेता" के अवतरणों में अंतर

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जब भी आता है पतझर
 
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पर पेड़ों से
 
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पत्तों का आसंग नहीं बदला
 
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हरदम भरने को उड़ान
 
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लदती हैं शाख़ें
 
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बदली हवा
 
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सुबह होने का ढंग नहीं बदला
 
सुबह होने का ढंग नहीं बदला

17:44, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण


दुनिया बदली

मगर प्यार का रंग न बदला


अब भी

खिले फूल के अन्दर

खुशबू होती है

गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ

आँखें रोती हैं

कविता बदली, पर

लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला


वर्षा होती

आसमान में बादल

घिरने पर

पात बिखर जाते हैं

जब भी आता है पतझर

पर पेड़ों से

पत्तों का आसंग नहीं बदला


हरदम भरने को उड़ान

तत्पर रहती पाँखें

मौसम आने पर

फूलों से

लदती हैं शाख़ें

बदली हवा

सुबह होने का ढंग नहीं बदला