भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यों उड़ा है नशा जवानी का / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
जैसे बालू पे हर्फ़ पानी का  
 
जैसे बालू पे हर्फ़ पानी का  
  
खून से अपने लिख गए हैं जवाब
+
ख़ून से अपने लिख गए हैं जवाब
हम उन आँखों की बेज़बानी का
+
हम उन आँखों की बेज़ुबानी का
  
रा आया था लटें खोले कोई  
+
रात आया था लटें खोले कोई  
 
फूल महका था रातरानी का  
 
फूल महका था रातरानी का  
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
रंग देखें गुलाब के भी आज
 
रंग देखें गुलाब के भी आज
जिनको दावा है बागवानी का
+
जिनको दावा है बाग़वानी का
 
<poem>
 
<poem>

01:43, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


यों उड़ा है नशा जवानी का
जैसे बालू पे हर्फ़ पानी का

ख़ून से अपने लिख गए हैं जवाब
हम उन आँखों की बेज़ुबानी का

रात आया था लटें खोले कोई
फूल महका था रातरानी का

कही ऐसा न हो, मिलें जब आप
कहनेवाला हो चुप कहानी का!

रंग देखें गुलाब के भी आज
जिनको दावा है बाग़वानी का