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मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ ।
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एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा ।
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आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।
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एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1।
  
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
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मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा ।
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लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
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मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ।
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ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।2।
  
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
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जब किसी ढब से निकल तिनका गया
 
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तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए ।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
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ऐंठता तू किसलिए इतना रहा
 
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एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।3।
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
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मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
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लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
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मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
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ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
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जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
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तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
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ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
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एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
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15:37, 23 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ ।
एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा ।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1।

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा ।
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ।
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।2।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया ।
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए ।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ।
एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।3।