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"इस बेरुखी से प्यार कभी छिप नहीं सकता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
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इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
 
तू भी है बेक़रार, कभी छिप नहीं सकता
 
 
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
 
रातों का यह ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
 
 
मंज़िल भले ही गर्द के पांवों से छिप गयी
 
मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता
 
 
मजबूरियाँ हज़ार हों मिलने में प्यार को
 
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
 
 
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बाँकपन गुलाब
 
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता
 
<poem>
 

01:23, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण