भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सिरहाने रात के / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल }} तकिय...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल | |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल | ||
}} | }} | ||
− | + | <Poem> | |
− | + | ||
तकिये के सिरे पर सिर-- | तकिये के सिरे पर सिर-- | ||
− | |||
उखड़ी हुई नींद में | उखड़ी हुई नींद में | ||
− | |||
असंख्य गाँठों को खोलते | असंख्य गाँठों को खोलते | ||
− | |||
अंधेरे में दिखती चीज़ों की | अंधेरे में दिखती चीज़ों की | ||
− | |||
शक्ल को पूरा करते-- | शक्ल को पूरा करते-- | ||
− | |||
खिड़्की से झाँकते तारों | खिड़्की से झाँकते तारों | ||
− | |||
पत्तों को लाते करीब | पत्तों को लाते करीब | ||
− | |||
करवट बदलते | करवट बदलते | ||
− | |||
चीज़ों की धड़कनों साँसों को | चीज़ों की धड़कनों साँसों को | ||
− | |||
सुनते-- | सुनते-- | ||
− | |||
सिरहाने रात के ! | सिरहाने रात के ! | ||
+ | </poem> |
18:04, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
तकिये के सिरे पर सिर--
उखड़ी हुई नींद में
असंख्य गाँठों को खोलते
अंधेरे में दिखती चीज़ों की
शक्ल को पूरा करते--
खिड़्की से झाँकते तारों
पत्तों को लाते करीब
करवट बदलते
चीज़ों की धड़कनों साँसों को
सुनते--
सिरहाने रात के !