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"जेब / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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मेरी भी एक जेब है । | मेरी भी एक जेब है । | ||
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पत्नी कहती है | पत्नी कहती है | ||
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रहती है खाली । | रहती है खाली । | ||
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खाली जेब हर सुबह मिलती है खाली । | खाली जेब हर सुबह मिलती है खाली । | ||
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कोट की जेब हो या कमीज़ की । | कोट की जेब हो या कमीज़ की । | ||
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पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की | पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की | ||
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चिड़ियाँ चहचहाती हैं | चिड़ियाँ चहचहाती हैं | ||
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मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ | मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ | ||
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घास पर-- पीली मुरझाई घास पर | घास पर-- पीली मुरझाई घास पर | ||
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धीरे-धीरे माथे को तपा कर धूप | धीरे-धीरे माथे को तपा कर धूप | ||
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दिलाती है याद हज़ार चीज़ों की । | दिलाती है याद हज़ार चीज़ों की । | ||
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मैं हाथ डालता हूँ जेब में | मैं हाथ डालता हूँ जेब में | ||
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खाली जेब । खाली । कोई बात नहीं | खाली जेब । खाली । कोई बात नहीं | ||
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मैं उसे धूप पर उलट दूँ | मैं उसे धूप पर उलट दूँ | ||
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या बंद रखूँ | या बंद रखूँ | ||
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कोई फ़र्क नहीं पड़ता । | कोई फ़र्क नहीं पड़ता । | ||
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खाली । जेब । खाली जेब की स्मृतियाँ । | खाली । जेब । खाली जेब की स्मृतियाँ । | ||
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11:34, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
मेरी भी एक जेब है ।
पत्नी कहती है
रहती है खाली ।
खाली जेब हर सुबह मिलती है खाली ।
कोट की जेब हो या कमीज़ की ।
पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की
चिड़ियाँ चहचहाती हैं
मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ
घास पर-- पीली मुरझाई घास पर
धीरे-धीरे माथे को तपा कर धूप
दिलाती है याद हज़ार चीज़ों की ।
मैं हाथ डालता हूँ जेब में
खाली जेब । खाली । कोई बात नहीं
मैं उसे धूप पर उलट दूँ
या बंद रखूँ
कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।
खाली । जेब । खाली जेब की स्मृतियाँ ।