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"मिल गया मुझ को / मासूम शायर" के अवतरणों में अंतर

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गुमा तो बाद में होगा मगर  कब मिल  गया  मुझ  को
  
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इसे  वो  आग  कहते थे  मगर कब  जान  मैं  पाया
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बड़ों की  बात  का मानी सुनो अब मिल गया मुझ  को
  
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मज़ा  खोने  में भी कुछ है जिसे मैं आज  समझा  हूँ
ये बहते  अश्क़ कहते हैं अरे सब मिल गया  मुझ  को<br />
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ये बहते  अश्क़ कहते हैं- अरे, सब मिल गया  मुझ  को
  
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जब अपनी जान देनी थी वही तब मिल गया  मुझ को<br />
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जब अपनी जान देनी थी वही तब मिल गया  मुझ को
  
उसे  बस देख कर इन में मेरी आँखों को  चूमा  था<br />
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उसे  बस देख कर इन में मेरी आँखों को  चूमा  था
अचानक चाँद तेरा  ये कोई शब मिल गया  मुझ  को<br />
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अचानक चाँद तेरा  ये कोई शब मिल गया  मुझ  को
  
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कहा 'मासूम' ने मुझसे कि मज़हब मिल गया मुझ को<br />
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कहा 'मासूम' ने मुझसे कि मज़हब मिल गया मुझ को
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20:41, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

मुहब्बत में मुहब्बत के सिवा सब मिल गया मुझ को
नही मिलना था उस को पर मेरा रब मिल गया मुझ को

कोई ये आ के कहता है कि उस को खो दिया मैने
गुमा तो बाद में होगा मगर कब मिल गया मुझ को

इसे वो आग कहते थे मगर कब जान मैं पाया
बड़ों की बात का मानी सुनो अब मिल गया मुझ को

मज़ा खोने में भी कुछ है जिसे मैं आज समझा हूँ
ये बहते अश्क़ कहते हैं- अरे, सब मिल गया मुझ को

हमेशा यूँ ही तड़पूँ मैं मुझे मरने नही देता
जब अपनी जान देनी थी वही तब मिल गया मुझ को

उसे बस देख कर इन में मेरी आँखों को चूमा था
अचानक चाँद तेरा ये कोई शब मिल गया मुझ को

किसी तपती दुपहरी में दिया जब आब प्यासे को
कहा 'मासूम' ने मुझसे कि मज़हब मिल गया मुझ को