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"मैं कृतज्ञ हूँ / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मैं
 
नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मैं
 
 
ज़रा देर से ही सही मुझे यह ज्ञात हुआ
 
ज़रा देर से ही सही मुझे यह ज्ञात हुआ
 
  
 
आज मैं कृतज्ञ हूँ
 
आज मैं कृतज्ञ हूँ
 
 
जाने अनजाने हर किसी का
 
जाने अनजाने हर किसी का
 
 
और यह हर किसी का व्यूह
 
और यह हर किसी का व्यूह
 
 
मुझे त्रासता नहीं है
 
मुझे त्रासता नहीं है
 
 
एक एक को मैं अलगाता हूँ
 
एक एक को मैं अलगाता हूँ
 
 
पास चला जाता हूँ
 
पास चला जाता हूँ
 
 
कंधे पर हाथ रखकर कहता हूँ
 
कंधे पर हाथ रखकर कहता हूँ
 
 
अपनी कहो
 
अपनी कहो
 
  
 
अपना ज़माना ज़रा और है
 
अपना ज़माना ज़रा और है
 
 
कोई किसी की नहीं सुनता
 
कोई किसी की नहीं सुनता
 
 
तो भी हर कोई हर किसी के पास खड़ा है
 
तो भी हर कोई हर किसी के पास खड़ा है
 
 
हर कोई अपना अधिवक्ता है
 
हर कोई अपना अधिवक्ता है
 
  
 
ऎसे में
 
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कोई यदि प्रिय कवि है
 
कोई यदि प्रिय कवि है
 
 
तो यह उस कवि के लिए अच्छा है
 
तो यह उस कवि के लिए अच्छा है
 
 
कविता से मिलता ही क्या कुछ है
 
कविता से मिलता ही क्या कुछ है
 
 
रायल्टी के थोड़े पैसे मिल जाएँ यही बहुत है
 
रायल्टी के थोड़े पैसे मिल जाएँ यही बहुत है
 
 
पैसों का अर्थ आज कौन नहीं जानता
 
पैसों का अर्थ आज कौन नहीं जानता
 
 
(मांग कर खाना असंभव है देगा कौन
 
(मांग कर खाना असंभव है देगा कौन
 
 
चर्चा हो तो भी कम लाभ नहीं
 
चर्चा हो तो भी कम लाभ नहीं
 
 
भाषा बाज़ार की है बात मगर जी की है
 
भाषा बाज़ार की है बात मगर जी की है
 
  
 
यदि मेरी बात मेरी भाषा के ओंठों को
 
यदि मेरी बात मेरी भाषा के ओंठों को
 
 
पार नहीं कर पाती तो भी क्या बुरा है
 
पार नहीं कर पाती तो भी क्या बुरा है
 
 
कह-कहवाव से भी अलग
 
कह-कहवाव से भी अलग
 
 
कभी कभी बात होती है
 
कभी कभी बात होती है
 
  
 
मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं
 
मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं
 
 
मुझे तो प्रसन्नता है  
 
मुझे तो प्रसन्नता है  
 
 
यदि मेरे सपनों को कोई भी नहीं कहता
 
यदि मेरे सपनों को कोई भी नहीं कहता
 
 
मेरे हैं
 
मेरे हैं
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05:32, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मैं
ज़रा देर से ही सही मुझे यह ज्ञात हुआ

आज मैं कृतज्ञ हूँ
जाने अनजाने हर किसी का
और यह हर किसी का व्यूह
मुझे त्रासता नहीं है
एक एक को मैं अलगाता हूँ
पास चला जाता हूँ
कंधे पर हाथ रखकर कहता हूँ
अपनी कहो

अपना ज़माना ज़रा और है
कोई किसी की नहीं सुनता
तो भी हर कोई हर किसी के पास खड़ा है
हर कोई अपना अधिवक्ता है

ऎसे में
कोई यदि प्रिय कवि है
तो यह उस कवि के लिए अच्छा है
कविता से मिलता ही क्या कुछ है
रायल्टी के थोड़े पैसे मिल जाएँ यही बहुत है
पैसों का अर्थ आज कौन नहीं जानता
(मांग कर खाना असंभव है देगा कौन
चर्चा हो तो भी कम लाभ नहीं
भाषा बाज़ार की है बात मगर जी की है

यदि मेरी बात मेरी भाषा के ओंठों को
पार नहीं कर पाती तो भी क्या बुरा है
कह-कहवाव से भी अलग
कभी कभी बात होती है

मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं
मुझे तो प्रसन्नता है
यदि मेरे सपनों को कोई भी नहीं कहता
मेरे हैं