भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मार्ग / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=त्रिलोचन | |रचनाकार=त्रिलोचन | ||
− | |संग्रह=चैती | + | |संग्रह=चैती / त्रिलोचन |
− | }} | + | }} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
बिछे हुए मार्ग यहाँ अनेक हैं; | बिछे हुए मार्ग यहाँ अनेक हैं; | ||
− | |||
यहाँ, वहाँ, दृष्टि जहाँ घुमाइए, | यहाँ, वहाँ, दृष्टि जहाँ घुमाइए, | ||
− | |||
उठे पदों की गति की कहानियाँ | उठे पदों की गति की कहानियाँ | ||
− | + | अजस्रता में अपनी सजीव हैं । | |
− | अजस्रता में अपनी सजीव हैं | + | |
− | + | ||
चली नदी सी पद की परंपरा | चली नदी सी पद की परंपरा | ||
− | |||
रुकी नहीं वेग कभी चुका नहीं | रुकी नहीं वेग कभी चुका नहीं | ||
− | |||
नए नए पैर अनेक भाव से | नए नए पैर अनेक भाव से | ||
− | + | बढ़े । इसी से पदवी बनी रही । | |
− | बढ़े | + | |
− | + | ||
कभी अहेरी मृग खोजने गए | कभी अहेरी मृग खोजने गए | ||
− | |||
जलाशयों के तट, तो प्रयाण को | जलाशयों के तट, तो प्रयाण को | ||
− | |||
बता दिया मार्ग बिना अहेर के | बता दिया मार्ग बिना अहेर के | ||
− | + | सुमार्गता एक नवीन तथ्य है । | |
− | सुमार्गता एक नवीन तथ्य है | + | |
− | + | ||
कई गए, और गए, और चला किए, | कई गए, और गए, और चला किए, | ||
− | |||
रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया | रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया | ||
− | |||
चला किया तो बहुधा प्रसिद्धि भी | चला किया तो बहुधा प्रसिद्धि भी | ||
− | + | मिली, दिखा लक्षण लक्ष्य एक ही । | |
− | मिली, दिखा लक्षण लक्ष्य एक ही | + | |
− | + | ||
अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया, | अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया, | ||
− | |||
प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में | प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में | ||
− | |||
अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ | अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ | ||
− | + | अनेकता ही नव आत्मबोध है । | |
− | अनेकता ही नव आत्मबोध है | + | </poem> |
05:23, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
बिछे हुए मार्ग यहाँ अनेक हैं;
यहाँ, वहाँ, दृष्टि जहाँ घुमाइए,
उठे पदों की गति की कहानियाँ
अजस्रता में अपनी सजीव हैं ।
चली नदी सी पद की परंपरा
रुकी नहीं वेग कभी चुका नहीं
नए नए पैर अनेक भाव से
बढ़े । इसी से पदवी बनी रही ।
कभी अहेरी मृग खोजने गए
जलाशयों के तट, तो प्रयाण को
बता दिया मार्ग बिना अहेर के
सुमार्गता एक नवीन तथ्य है ।
कई गए, और गए, और चला किए,
रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया
चला किया तो बहुधा प्रसिद्धि भी
मिली, दिखा लक्षण लक्ष्य एक ही ।
अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया,
प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में
अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ
अनेकता ही नव आत्मबोध है ।